
जनजागरण की राह पर दुर्गावाहिनी
लव जिहाद के सामाजिक प्रभाव और स्कूल-कॉलेजों की बदलती चेतना”
प्रदेश के शिक्षण संस्थानों में महिला चेतना, कानूनी सक्रियता और समकालीन सामाजिक चुनौतियों पर है आज का विमर्श ”
समकालीन भारतीय समाज एक ऐसे ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहाँ सामाजिक संरचनाएँ केवल वैधानिक नियमों से नहीं, बल्कि जनचेतना और सांस्कृतिक विमर्शों से भी पुनर्निमित हो रही हैं। यह पुनर्निर्माण कई स्तरों पर दिखाई देता है, विशेषकर तब जब बात युवा पीढ़ी और उनकी सामाजिक सुरक्षा की होती है। लव जिहाद, एक विवादास्पद किन्तु सामाजिक विमर्श का केंद्र बन चुका शब्द, अब केवल व्यक्तिगत प्रेम कहानियों या अंतरधार्मिक विवाहों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक ऐसे मुद्दे के रूप में उभरा है, जहाँ धर्म, संस्कृति, राजनीति, शिक्षा और मीडिया — सबके तंतु आपस में उलझते दिखाई देते हैं। वर्तमान परिदृश्य में जब भोपाल, इंदौर, उज्जैन जैसे मध्यप्रदेश के प्रमुख शहरों में स्कूल-कॉलेजों की छात्राओं के साथ घटित कुछ मामलों ने न केवल समाज को झकझोरा है, बल्कि महिला संगठनों, प्रशासन और शिक्षण संस्थानों को सक्रियता के लिए प्रेरित किया है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि इस विषय पर एक विवेकपूर्ण और गहन समीक्षा की जाए।
दुर्गावाहिनी, जो विश्व हिंदू परिषद की महिला शाखा है, ने हाल ही में मध्यभारत प्रांत में तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर सामाजिक चेतना की दिशा में एक नई पहल की है। इस कार्यक्रम में शामिल 80 से अधिक बहनों को न केवल संगठनात्मक प्रशिक्षण दिया गया है, बल्कि उन्हें सामाजिक विमर्शों में अपनी भूमिका पहचानने और जनजागरण अभियान चलाने हेतु सशक्त किया गया है। यह प्रशिक्षण केवल वैचारिक नहीं है, बल्कि व्यावहारिक कौशलों से भी युक्त है — जैसे काउंसलिंग, स्कूल-कॉलेजों में संवाद, कानूनी सहायताओं की जानकारी, और समुदाय से जुड़ाव की विधियाँ। इस प्रयास का उद्देश्य लव जिहाद जैसे विषयों पर संवाद को जन्म देना है, न कि संघर्ष को। दुर्गावाहिनी की यह पहल महिला सशक्तिकरण के उस आयाम को रेखांकित करती है जहाँ महिलाएँ केवल पीड़िता नहीं, बल्कि संरक्षिका, संरचना और संप्रेषण की भूमिका में हैं।
जनजागरण का यह अभियान केवल दुर्गावाहिनी तक सीमित नहीं है। इसके साथ पुलिस विभाग की सहभागिता इसे एक वैधानिक पहचान भी प्रदान करती है। स्कूल और कॉलेजों में पुलिस अधिकारियों द्वारा काउंसलिंग सत्र आयोजित करने की योजना, विशेषकर छात्राओं को आत्मरक्षा, साइबर जागरूकता और कानूनी अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इससे एक ओर जहाँ छात्राओं में आत्मविश्वास का संचार होता है, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी यह साबित होता है कि राज्य व्यवस्था ऐसे विषयों को केवल नैतिकता के धरातल पर नहीं, बल्कि विधिक परिप्रेक्ष्य में भी देख रही है। जब ऐसे अभियानों में पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति होती है, तब छात्रों में यह विश्वास उत्पन्न होता है कि उनकी समस्याएँ सुनी और सुलझाई जाएंगी। विशेषकर जब भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में संगठित गिरोहों के संदर्भ में शिकायतें सामने आई हैं, तब प्रशासन की संलग्नता एक आवश्यक स्तंभ के रूप में उभरती है।
हाल ही में सामने आए एक मामला, जिसमें एक शूटिंग एकेडमी संचालक पर युवतियों के ब्रेनवाश, मांस खाने के लिए दबाव, और अश्लील व्यवहार जैसे आरोप लगे हैं, समाज के सामने कई प्रश्न खड़े करता है। पीड़िताओं के अनुभवों ने यह स्पष्ट किया है कि किसी भी समुदाय, व्यवसाय या प्रतिष्ठान के भीतर यदि शक्ति संरचना असंतुलित हो, तो उसका दुरुपयोग संभाव्य है। यहाँ यह भी स्पष्ट हो जाता है कि यह केवल धार्मिक पहचान का प्रश्न नहीं, बल्कि पितृसत्तात्मक शक्ति-संरचना और युवा मानस की संवेदनशीलता का मुद्दा भी है। इस संदर्भ में दुर्गावाहिनी की सक्रियता, समाज को जागरूक करने के साथ-साथ, उस मानसिकता के विरुद्ध खड़े होने का प्रयास भी है जो महिलाओं को वस्तु के रूप में देखती है। ऐसे प्रकरणों को केवल ‘लव जिहाद’ कह देना पर्याप्त नहीं है; इन घटनाओं में मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय और कानूनी विमर्शों की गहराई तक जाना होगा।
शिक्षण संस्थान केवल ज्ञान केंद्र नहीं, बल्कि सामाजिक निर्माण के केंद्र होते हैं। ऐसे में यदि युवा छात्राओं के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है, तो उसके पीछे कई सामाजिक, पारिवारिक और डिजिटल कारक जिम्मेदार हो सकते हैं। इस भ्रम को समाप्त करने के लिए कुटुंब प्रबोधन कार्यक्रम, जो परिवार की एकता और भावनात्मक समर्थन पर केंद्रित है, एक महत्वपूर्ण उपाय है। जब परिवार अपने बच्चों के साथ संवाद में संलग्न होता है, तब बाहरी भ्रामक प्रभावों की संभावना स्वतः ही कम हो जाती है। यही कारण है कि दुर्गावाहिनी जैसे संगठन अब केवल विरोध या प्रदर्शन तक सीमित नहीं रहकर, घर-घर संवाद स्थापित करने की दिशा में अग्रसर हैं।
इन सभी प्रयासों के केंद्र में यह विश्वास है कि भारत एक बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है, जहाँ सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार है। किन्तु जब उन अधिकारों का दुरुपयोग कुछ असामाजिक तत्व करते हैं — चाहे उनका कोई भी धर्म हो — तब उसका प्रतिरोध केवल वैधानिक नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना से भी होना चाहिए। वर्तमान घटनाएं हमें यही सिखा रही हैं कि संवाद, शिक्षा, आत्मसुरक्षा और सामाजिक चेतना — ये चारों स्तंभ मिलकर ही एक सुरक्षित और संतुलित समाज का निर्माण कर सकते हैं। महिला संगठनों की सक्रियता, प्रशासनिक संलग्नता, मीडिया की सजगता और जन-सहभागिता — ये सभी मिलकर लव जिहाद जैसे विवादित विषय पर एक संतुलित और वैधानिक विमर्श को जन्म दे सकते हैं।
लेखक,
✍️ डॉ. पंकज भार्गव
Advocate Dr. Pankaj Bhargava
(स्वतंत्र पत्रकार, समीक्षक एवं विश्लेषक)



